श्रावण मास माहात्म्य ~
सनत्कुमार जी ने भगवान शिव जी से कहा–’योगियों के द्वारा आराधनीय चरणकमल वाले हे देवदेव ! हे महाभाग ! हमने आप से अनेक व्रतों तथा बहुत प्रकार के धर्मों का श्रवण किया फिर भी हम लोगों के मन में सुनने की अभिलाषा है। बारहों मासों में जो मास सबसे श्रेष्ठ, आपकी अत्यन्त प्रीति कराने वाला, सभी कर्मों की सिद्धि देने वाला हो और अन्य मास में किया गया कर्म यदि इस मास में किया जाए तो वह अनन्त फल प्रदान कराने वाला हो तो–हे देव ! उस मास को बताने की कृपा कीजिए, साथ ही लोकानुग्रह की कामना से उस मास के सभी धर्मों का भी वर्णन कीजिए।’
ईश्वर बोले–’हे सनत्कुमार ! मैं अत्यन्त गोपनीय भी आपको बताऊँगा ! हे सुव्रत ! हे विधिनन्दन ! मैं आपकी श्रवणेच्छा तथा भक्ति से प्रसन्न हूँ। बारहों मासों में श्रावण मास मुझे अत्यन्त प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है, अतः इसे श्रावण कहा गया है। इस मास में श्रवण-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण से भी इसे श्रावण कहा गया है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। निर्मलता गुण के कारण यह आकाश के सदृश है इसलिए ‘नभा’ कहा गया है।
इस श्रावण मास के धर्मों की गणना करने में इस पृथ्वीलोक में कौन समर्थ हो सकता है, जिसके फल का सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने के लिए ब्रह्माजी चार मुख वाले हुए, जिसके फल की महिमा को देखने के लिए इन्द्र हजार नेत्रों से युक्त हुए और जिसके फल को कहने के लिए शेषनाग दो हजार जिह्वाओं से सम्पन्न हुए। अधिक कहने से क्या प्रयोजन, इसके माहात्म्य को देखने और कहने में कोई भी समर्थ नहीं है।
हे मुने ! अन्य मास इसकी एक कला को भी नहीं प्राप्त होते हैं। यह सभी व्रतों तथा धर्मों से युक्त है। इस महीने में एक भी दिन ऐसा नहीं है जो व्रत से रहित दिखाई देता हो। इस माह में प्रायः सभी तिथियाँ व्रतयुक्त हैं।
इसके माहात्म्य के सन्दर्भ में मैंने जो कहा है, वह केवल प्रशंसा मात्र नहीं है। आर्तों, जिज्ञासुओं, भक्तों, अर्थ की कामना करने वाले, मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले और अपने-अपने अभीष्ट की आकांक्षा रखने वाले चारों प्रकार के लोगों–ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आश्रम वाले–को इस श्रावण मास में व्रतानुष्ठान करना चाहिए।
इस मास में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
इस मास में दिन-रात अथवा केवल दिन में अथवा भोजन के समय मौनव्रत धारण करने वाला भी महान वक्ता हो जाता है। मौन धारण करने वाले का किसी से कलह नहीं होता अतः मौनव्रत अत्यंत उत्कृष्ट है।
जो मनुष्य श्रावण मास में पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करता है वह सदा पंचामृत का पान करने वाला, गोधन से संपन्न, अत्यंत मधुर भाषण करने वाला तथा त्रिपुर के शत्रु भगवान् शिव को प्रिय होता है। जो इस मास में अनोदान व्रत करने वाला तथा हविष्यान्न ग्रहण करने वाला होता है, वह व्रीहि आदि सभी प्रकार के धान्यों का अक्षय निधिस्वरूप हो जाता है। पत्तल पर भोजन करने वाला श्रेष्ठ मनुष्य सुवर्णपात्र में भोजन करने वाला तथा शाक को त्याग करने से शाककर्ता हो जाता है।
श्रावण मास में केवल भूमि पर सोने वाला कैलाश में निवास प्राप्त करता है. इस मास में एक भी दिन प्रातःस्नान करने से मनुष्य को एक वर्ष स्नान करने के फल का भागी कहा गया है. इस मास में जितेन्द्रिय होने से इन्द्रियबल प्राप्त होता है. इस मास में स्फटिक, पाषाण, मृत्तिका, मरकतमणि, पिष्ट(पीठी), धातु, चन्दन, नवनीत आदि से निर्मित अथवा अन्य किसी भी शिवलिंग में साथ ही किसी स्वयं आविर्भूत न हुए लिंग में श्रेष्ठ पूजा करने वाला मनुष्य सैकड़ों ब्रह्महत्या को भस्म कर डालता है।
किसी तीर्थक्षेत्र में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के अवसर पर एक लाख जप से जो सिद्धि होती है, वह इस मास में एक बार के जप से ही हो जाती है। अन्य समय में जो हजार नमस्कार और प्रदक्षिणाएँ की जाती हैं, उनका जो फल होता है, वह इस मास में एक बार करने से ही प्राप्त हो जाता है।