सावन में सर्प पूजन

नाग पञ्चमी पर्व ~

श्रावण मास(सावन माह) के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को नाग पञ्चमी के रूप में मनाया जाता है। नाग पञ्चमी सम्पूर्ण विश्व में, हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली नाग देवताओं की एक पारम्परिक पूजा है। पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नाग देवता ही हैं। सनातन हिन्दू धर्म में नागों को देवताओं से भिन्न नहीं माना जाता। नाग देवता की पूजा करने से जीवन की सभी प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं। नाग पंचमी के दिन स्त्रियाँ नाग देवता की पूजा करती हैं तथा सर्पों को दूध अर्पित करती हैं और अपने परिवार की सुरक्षा के लिये प्रार्थना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि, सर्पों को अर्पित किया जाने वाला कोई भी पूजन, नाग देवताओं के समक्ष पहुँच जाता है। इसलिए श्रद्धालु भक्त इस अवसर पर, नाग देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में सर्पों की पूजा करते हैं।

नाग पञ्चमी पूजन के समय विशेष रूप से निम्नलिखित बारह नागों की पूजा की जाती है –

अनन्त
वासुकी
शेष
पद्म
कम्बल
कर्कोटक
अश्वतर
धृतराष्ट्र
शङ्खपाल
कालिय
तक्षक
पिङ्गल

नाग पञ्चमी पूजा मन्त्र –

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥

भावार्थ – इस संसार में, आकाश, स्वर्ग, झीलें, कुएँ, तालाब तथा सूर्य-किरणों में निवास करने वाले सर्प, हमें आशीर्वाद दें तथा हम सभी आपको बारम्बार नमन करते हैं।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥

भावार्थ – नौ नाग देवताओं के नाम अनन्त, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कम्बल, शङ्खपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक तथा कालिय हैं। यदि प्रतिदिन प्रातःकाल नियमित रूप से इनका जप किया जाता है, तो नाग देवता आपको समस्त पापों से सुरक्षित रखेंगे तथा आपको जीवन में विजयी बनायेंगे।

यदि आपको नागों(सर्पों) से भय लगता है तो पढ़ें भगवती मनसा देवी जी का निम्नलिखित स्तोत्र –

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा॥
जरत्कारुप्रियास्तीकमाता विषहरेति च।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता॥
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च॥
नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मन्दिरे।
नागशोभे महादुर्गे नागवेष्टितविग्रहे ।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुच्यते नात्र संशयः॥

भावार्थ ~ जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तीकमाता, विषहरा और महाज्ञानयुता – इन नामों से वे भगवती विश्वमें पूजी जाती हैं। जो मनुष्य पूजा के समय देवी के इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशजों को नागों का भय नहीं रहता॥
जिस शयनागार में नागों का भय हो, जिस भवन में नाग रहते हों, जो स्थान नागों से युक्त होने के कारण अत्यन्त दारुण बन गया हो तथा जो नागों से वेष्टित हो, उन स्थानों पर इस स्तोत्र का पाठ करके मनुष्य सर्पभय से मुक्त हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं है॥

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