श्रावण मास में सोमवार व्रत कैसे करें

श्रावण महीने में सोमवार व्रत करने का फल ~

 

सनत्कुमार जी ने भगवान शिव जी से कहा- हे भगवन। आप श्रावण मास में सोमवार का माहात्म्य मुझे बताइए।

ईश्वर बोले – हे विप्र ! बारहों महीनों में सोमवार अत्यंत श्रेष्ठ है। अन्य मासों में यदि सोमवार व्रत करने में असमर्थ हो तो श्रावण मास में इसे अवश्य करना चाहिए। इस मास में इस व्रत को करके मनुष्य वर्ष भर के लिए व्रत का फल प्राप्त करता है। श्रावण में शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को यह संकल्प करें कि “मैं विधिवत इस व्रत को करूँगा / करूँगी, शिवजी मुझ पर प्रसन्न हों”। इस प्रकार चारों सोमवार के दिन और यदि पांच हो जाए तो उसमें भी प्रातःकाल यह संकल्प करें और रात्रि में शिवजी का पूजन करें। सोलह उपचारों से सांयकाल में भी शिवजी की पूजा कर और एकाग्रचित्त होकर इस दिव्य कथा का श्रवण करें।

हे सनत्कुमार ! श्रावण मास के प्रथम सोमवार को इस श्रेष्ठ व्रत को प्रारम्भ करे। मनुष्य को चाहिए कि अच्छी तरह स्नान कर के पवित्र होकर श्वेत वस्त्र धारण कर ले और काम, क्रोध, अहंकार, द्वेष, निंदा आदि का त्याग कर के मालती, मल्लिका आदि श्वेत पुष्पों को लाएं। इनके अतिरिक्त अन्य विविध पुष्पों से शिवजी की पूजा करें। उसके बाद कहें – मैं शर्व, भवानीश, महादेव, उग्र, उग्रनाथ, भव, शशिमौलि, रूद्र, नीलकंठ, शिव तथा भवहारी का ध्यान करता हूँ।

इस प्रकार अपने विभव के अनुसार मनोहर उपचारों से देवेश शिव का विधिवत पूजन करें, जो इस व्रत को करता है उसके पुण्य फल को सुनिए। जो लोग सोमवार के दिन पार्वती सहित शिव की पूजा करते हैं, वे पुनरावृत्ति से रहित अक्षय लोक प्राप्त करते हैं।
इसे करने से पुत्र की इच्छा रखने वाला मनुष्य पुत्र प्राप्त करता है और धन चाहने वाला धन प्राप्त करता है। वह जिस-जिस अभीष्ट की कामना करता है, उसे पा जाता है। इस लोक में दीर्घकालिक वांछित सुखोपभोगों को भोगकर अंत में श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ होकर वह रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। चित्त चंचल है, धन चंचल है और जीवन भी चंचल है – ऐसा समझकर प्रयत्नपूर्वक व्रत का उद्यापन करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत को करता है वह जिस-जिस अभिलषित वस्तु की कामना करता है, उसे प्राप्त कर लेता है और अंत में शिव लोक को प्राप्त होकर उस लोक में पूजित होता है।

हे सनत्कुमार ! सर्वप्रथम श्रीकृष्ण ने इस मंगलकारी सोमवार व्रत को किया था। श्रेष्ठ, आस्तिक तथा धर्मपरायण राजाओं ने भी इस व्रत को किया था। जो इस व्रत का नित्य श्रवण करता है वह भी उस व्रत के करने का फल प्राप्त करता है।

 

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